MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?

उत्तर -

जाति-व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ आधुनिक काल में देश में अनेक परिस्थितियाँ ऐसी उत्पन्न हो गई हैं जो जाति प्रथा को निर्बल बना रही हैं। जाति प्रथा को दुर्बल बनाने वाले मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं-

(1) वर्तमान शिक्षा - जाति प्रथा को निर्बल बनाने में सबसे बड़ा हाथ वर्तमान शिक्षा का है। वर्तमान शिक्षा धर्म निरपेक्ष है। वह स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व आदि जनतन्त्रीय मूल्यों पर बल देती है। वर्तमान शिक्षा पर पश्चिम के वैज्ञानिक और स्वतन्त्र विचारों की छाप है। उसमें मनुष्य की महत्ता पर अधिक बल दिया गया है। अत: जैसे-जैसे हिन्दू-समाज में वर्तमान शिक्षा का प्रचार बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे जात-पाँत के बन्धन भी टूटते जाते हैं। सहशिक्षा ने अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया है। सभी जातियों के बालकों के एक ही विद्यालय में पढ़ने से छुआछूत और ऊँच-नीच का भाव क्रमशः उठ रहा है।

(2) औद्योगीकरण - औद्योगीकरण से जाँत-पाँत का भेदभाव कम हुआ है क्योंकि कल-कारखानों में सभी जातियों के लोग काम करने लगे। ए० डब्ल्यू० ग्रीन के शब्दों में, " यद्यपि ब्राह्मण को शूद्र की छाया मात्र से दूषित होने के कारण शुद्ध होने के लिये लम्बा धार्मिक स्नान करना पड़ता है, लेकिन नगर में भीड़-भाड़ वाली गली और व्यस्त कार्यालयों में शूद्रों की छाया से नहीं बचा जा सकता।" औद्योगीकरण के प्रभाव से कारखानों, होटलों, मण्डियों, रेलों, ट्रामों, बसों, चाय की दुकानों आदि में सभी जातियों के व्यक्तियों के परस्पर सम्पर्क होने के कारण अब छुआछूत सम्बन्धी नियमों का पालन सम्भव नहीं रह गया है।

(3) धन के महत्व में वृद्धि - वर्तमान काल में जाति के स्थान पर धन ही सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार होता जा रहा है। आजकल जो व्यक्ति जिस काम में लाभ देखता है, वही करने लगता है। व्यवसायों का आधार जाति नहीं वरन् व्यक्तिगत योग्यता और धनोपार्जन की सुविधा हो गई। जूतों का काम सवर्ण जाति के लोग भी करने लगे हैं। अब निर्धन ब्राह्मण से धनी शूद्र को अधिक आदर मिलता है। इस प्रकार धन की दौड़ में जाति के बन्धन ढीले होते जा रहे हैं।

(4) समाज सुधार आन्दोलन - जाति-व्यवस्था को निर्बल बनाने में सबसे अधिक सक्रिय प्रयत्न समाज सुधार आन्दोलन की ओर से किया गया। आधुनिक शिक्षा के प्रभाव से देश में समाज-सुधार आन्दोलनों की बाढ़ सी आ गई जिसके कारण बम्बई में प्रार्थना समाज, बंगाल में ब्रह्म समाज तथा उत्तरी भारत में आर्य समाज ने जाति प्रथा को समूल नष्ट करने का प्रयत्न किया।

(5) आवागमन के साधन - जाति-प्रथा को निर्बल बनाने के आवागमन के साधनों काँ भी हाथ है। भारत में औद्योगीकरण के साथ-साथ आवागमन के साधनों का भी विकास हुआ। इससे भौगोलिक पृथकता दूर हुई और विभिन्न स्थानों के विचारों तथा रीति-रिवाजों आदि का एक-दूसरे पर प्रभाव पड़ा। बसों, रेलों, ट्रामों, मोटरों, रिक्शों आदि में जाँत-पाँत का विचार रखना कठिन हो गया। रिजले के अनुसार, "उन रेलवे स्टेशनों के प्लेटफार्मों पर जहाँ गाड़ी कुछ ही देर खड़ी रहती है, खाद्य सामग्री बेचने वाले किसी विक्रेता से उसकी जाति पूछकर चीज नहीं खरीदी जाती।"

(6) राजनीतिक आन्दोलन - समाज-सुधार आन्दोलनों के साथ-साथ राजनीतिक आन्दोलनों ने भी जाति प्रथा को निर्बल बनाने में सक्रिय भाग लिया। जाति प्रथा पर आधारित भेद भाव को समाप्त करना भी राजनैतिक जागृति के राष्ट्रीय आन्दोलनों के कार्यक्रम का एक भाग था। इन आन्दोलनों का लक्ष्य भारत में एक लोकतन्त्रीय स्वराज्य स्थापित करना था। इस कारण उन्होंने जातीय चेतना को निर्बल बनाने के लिये भरसक प्रयत्न किये। यहाँ यह स्मरणः रहे कि कुछ लोगों ने राजनैतिक क्षेत्र में जातिवाद को प्रोत्साहन भी दिया।

(7) नवीन कानून - अंग्रेजों के शासन से पूर्व हिन्दू एवं मुस्लिम राज्यों में विभिन्न जातियों के व्यक्तियों को अपराध के लिये भिन्न-भिन्न दण्ड दिये जाते थे। ब्रिटिश शासन की नई कानून व्यवस्था में समान अपराधों पर सभी जातियों को समान दण्ड दिया जाने लगा। न्यायालयों के स्थापित होने से जाति पंचायतों की शक्ति भी समाप्त हो गई और उनको सब अपराधियों को दण्ड देने का अधिकार भी न रहा। इस प्रकार जाति प्रथा के विरोधियों पर से नियन्त्रण हट गये और जाति के नियम भी धीरे-धीरे टूटने लगे।

(8) नये सामाजिक वर्गों का उदय - भारतीय समाज में नवीन सामाजिक वर्गों का उदय हो रहा है। ये सामाजिक वर्ग जाति का स्थान लेते जा रहे हैं। ये वर्ग खुले हैं और व्यवसाय, प्रतिष्ठा तथा धन और राजनीतिक स्वार्थों पर आधारित हैं। जातियों का संगठन गुरुतोन्मुख (Vertical) था, नये वर्ग दिगन्तसम (Horizontal) हैं। जैसे-जैसे वर्ग चेतना बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे जातीय चेतना कम होती जाती है।

(9) महिलाओं में जागृति - परम्परागत रूप में हिन्दू स्त्रियों की स्थिति अत्यन्त शोचनीय थी। पहले उन्हें नौकरी, विवाह तथा शिक्षा किसी भी क्षेत्र में स्वतन्त्रता नहीं थी परन्तु ब्रिटिश शासन काल में इस दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुये। स्त्रियों में शिक्षा का विस्तार तीव्रता से हुआ जिससे आर्थिक परावलम्बता घटी। इसके साथ ही साथ पाश्चात्य मूल्यों तथा सिनेमा के प्रभाव से रोमान्स तथा प्रेम-विवाह का महत्व बढ़ने लगा। इन दोनों ही अवस्थाओं ने जाति-पाँति के बन्धनों को कमजोर बनाया।

(10) भारत की स्वतन्त्रता - जाति प्रथा को सबसे बड़ा धक्का देश की स्वतन्त्रता से लगा। स्वतन्त्र भारत के संविधान की धारा 15. (2) ने सब नागरिकों की समानता की घोषणा की। देशी राज्य समाप्त होने से जाति प्रथा के दुर्ग ढह गये। यातायात के साधनों के विकास, शिक्षा का विस्तार, औद्योगीकरण तथा जनतन्त्रीय शासन पद्धति आदि के प्रभाव ने जाति की प्रतिष्ठा को काफी कम कर दिया है।

(11) सरकारी प्रयत्न - स्वतन्त्र भारत की सरकार द्वारा भी अनेक ऐसे कानून पास किये गये हैं जिससे जाति प्रथा पर निरन्तर प्रहार हो रहे हैं। इन कानूनों में 'हिन्दू विवाह वैधकरण अधिनियम, 1949', 'विशेष विवाह अधिनियम, 1954', तथा 'अस्पृश्यता अपराध अधिनियम, 1955' विशेष उल्लेखनीय हैं। इन प्रयत्नों के फलस्वरूप समाज पर जाति प्रथा की जकड़ अत्यन्त ढीली पड़ गई है।

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book